माँ का संदेश
माँ बनने का अंदेशा जब, खुशियों का संदेशा लाया ।
माँ बनने के अनुभव में मैंने, नव जीवन का दर्शन पाया।।
मैं भी अब मातृत्व छाँव की, छतरी को फैलाऊँगी ।
हरपल हरदम तेरी सूरत, मूरत खुद से दोहराऊँगी ।।
गलती तेरी मेरी होगी, पीड़ा मैं स्वयं उठाऊँगी ।
दर्द तुझे हो उससे पहले, मैं भागीदार बन जाऊँगी ।।
मेरे तन-मन का टुकड़ा तू, ना तुझे दूर कर पाऊँगी ।
माँ हूँ मैं, माँ बनकर, अपना हर फर्ज निभाऊँगी ।।
तेरे दुख और दर्द में मैं, स्वयं शरीक हो जाऊँगी ।
तू मेरे तन का टुकड़ा है, मैं तुझकों नहीं सताऊँगी ।।
गर दर्द मेरा भारी तुझ पर, तू अपनी मर्जी का मालिक ।
मुझे मेरे दर्द में रहने दे, मैं तुझ पर बोझ न बन पाऊँगी ।।
तू तो नादान है मेरे लिए, मैं कैसे यह भूल पाऊँगी ।
आखिरी अपने कतरे तक, मैं अपना फर्ज निभाऊँगी ।।
मैं पास रहूं या दूर रहूं, तू ही हरपल है याद मुझे ।
तू तो मेरा कतरा ही है, याद तेरी हर एक फ़रियाद मुझे ।।
मैं हूँ दुख में या सुख में हूँ, तू मेरी कोई याद न कर ।
तू हँसता है मैं हँसती हूँ, मेरे दुख-दर्द तू याद न कर ।।
तू खुश है गर मेरे बिन ही, तू बेशक मेरी याद न कर ।
माँ हूँ तेरी यह फर्ज मेरा, तू अपना फर्ज अदा कर न कर ।।
आज़ादी की अमृत गाथा
पीड़ियों ने हमारी गुलामीं की जकड़ में, गुजारी जिंदगी अपनी ।
सहे बेहिसाब अत्याचार, गुजारी जिंदगी जहालत में ।।
मगर आज़ादी का जज्बा, जंगलो में भी रहकर नहीं छोड़ा ।
छोड़ा महल, घर द्वार अपना, मगर हौसला नहीं तोड़ा ।। …..1
सन् सत्तावन याद हमें, वीरों ने मन में ठानी थी ।
दुश्मन तोपों से लैस उधर, मां भारती की इधर संताने थी ।।
बंदूकें दुश्मन ताने था, वो सीना ताने अड़े हुए ।
हिंदोस्तां की शान में, ले जान हथेली खड़े हुए ।। …..2
कितनों ने सीने पर गोली खाई, कितनों ने फंदे चूम लिए ।
कितनों ने कटाये सर वतन की खातिर ,
कितने प्यासे मर गए जेलों में वतन के लिए ।।
रहा संघर्ष अविरत, पीड़ियों की कुर्बानियाँ हुईं ।
हमें अपने वतन में, तब जाकर हासिल जिंदगानियाँ हुईं ।। …..3
मिली आज़ादी मगर, गुलामी की जंजीरें पुरानी थी ।
तोड़कर बंधन हमें, अपनी दास्तां खुद बनानी थी ।।
मिले विधि-विधान अपना, संस्कृति की हमें हो आजादी ।
सपनों सा रहे हिन्दोस्ता, मेरे वतन की हो आबादी ।। …..4
रहें स्वाधीन हम सब, सब धर्मों का सम्मान करें ।
मानवता का अवमान न हो, ऐसा हम प्रावधान करें ।।
नारी की हर घर इज्जत हो, ऐसा दृढ़ संकल्प करें ।
उंच-नीच हम भूल सभी, एक दूजे का उपकार करें ।। …..5
आत्मनिर्भर हो भारत का, हर एक व्यक्ति ।
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, बने वह दुर्गा और शक्ति ।।
हम लिखें तरक्की के नए, आयाम हर दिन ।
वतन का विश्व में, ऊंचा करें स्थान हर दिन ।। …..6
सद्भावना, सुख और शांति की गंगा बहाएंगे ।
वतन का विश्व में, ऊंचा परचम लहराएंगे ।।
प्रकृति की रक्षा का बीड़ा, हम भारती उठायेंगे ।
आजादी का अमृत महोत्सव, शान से ऐसे मनाएंगे ।। …..7
आँगन की हैं शान बेटियाँ ......
आँगन की हैं शान बेटियाँ,
करुणा की हैं खान बेटियाँ ।
घर को स्वर्ग बना दे बेटी
पापा का हैं गुमान बेटियाँ ।
बेटे से घर एक ही बनता,
बेटी है दो घर की रानी ।
बेटी के हैं रूप अनेक
कभी बहन,पत्नी और माँ और कभी दादी, नानी ।
दया धर्म की रखवाली हैं,
हर घर की वो शान हैं ।
बेटी है जिस भी आँगन में,
उसका जन्म महान है ।
ममता से वो भरी हुई हैं,
हर सुख-दुख में खड़ी हुई हैं ।
बनी देश की शान बेटियाँ,
अपने पद पर खड़ी हुई हैं ।
बेटी की करुणा को समझो,
तप के उसका मान रखो ।
ममता उसकी क्षमता समझो,
हर पल उसका सम्मान रखो ।
माँ
एक सूरत, एक मूरत, एक तू ही ज्ञान है ।
गर् तू अगर विद्यमान है, तो सर्व विद्यमान है
मैं तो बस नादान हूँ, तू सर्व सृष्टि ज्ञान है
माँ अगर विद्यमान है, तो सर्व विद्यमान है
यह रास्ते यह हौसले, यह सब तुम्हारी देन हैं
यह मंजिलें किस काम की, जब तू न विद्यमान है
यह झूठे हैं सब मुकाम, यह कामयाबी शून्य है
जब मंजिलें पांवों तले, पर तू न विद्यमान है
तुम हो यथार्थ में नहीं, यादें तुम्हारी साथ हैं
हर सुमंगल कार्य, तुम्हारी स्मृति के आगाज है
मैं हूँ विदित यह, तुम्हारे आशीर्वाद का प्रकाश है
तू अगर विद्यमान है, तो सर्व विद्यमान है
नित अपने कर्तव्य मार्ग पर आगे बढ़ती जाना है....
नन्ही सी किलकारी से, तुम आँगन को किलकाती हो ।
जीवन में करुणा, श्रद्धा, और भाव दया के लाती हो ।।
घर को उपवन सा सजा, रोज उसको महकाती हो ।
जीवन से भटके इस नर को, तुम सच्ची राह दिखाती हो ।।
नित अपने कर्तव्य मार्ग पर आगे बढ़ती जाती हो……
रक कोख में अपनी इस नर को, तुम जीवन नया दिलाती हो ।
कर्तव्य मार्ग पर अटल रहे, तुम उसको पाठ पढ़ाती हो ।।
अपने जीवन को ताक पे रख, हर संभव कष्ट उठाती हो ।
हँस-हँस कर आगे जीवन में, फिर भी तुम बढ़ती जाती हो ।।
नित अपने कर्तव्य मार्ग पर आगे बढ़ती जाती हो……
भटके नर को पथ पर लाना, जीवन का पाठ पढाना तुम ।
जब-जब संसार विपथ हो तब, उसको सन्मार्ग दिखाना तुम ।।
दुर्गा, चंडी, लक्ष्मीबाई, तुम मदर टेरेसा की रूपक हो ।
शक्ति की अपर खदान हो तुम, पर संयम सब को दिखलाती हो ।।
नित अपने कर्तव्य मार्ग पर आगे बढ़ती जाती हो……
जो अत्याचारी जुर्म करे, तुम्हें उसको पाठ पढ़ाना है ।
अस्मिता पर तुम्हारी जो वार करे, तुम्हें उसको सबक सिखाना है ।।
जो तेरा अपमान करे उसे, उसका स्थान दिखाना है ।।
नित अपने कर्तव्य मार्ग पर आगे बढ़ते जाना है आगे बढ़ते जाना है ।।
नित अपने कर्तव्य मार्ग पर आगे बढ़ते जाना है……
नारी बिन मैं कोई नहीं….
नन्हा सा जब रहा गर्भ में, माँ ने मुझे दुलार दिया ।
आया जब इस मृत्युलोक में, तब दिन-दिन मुझको प्यार किया ।।
मेरी हर एक परछाई को भी, विपदाओं से बचा लिया ।
आंच न आने दी मुझ पर, हर संकट खुद पर सजा लिया ।।
मैं भी खुदगर्ज रहा कितना, अपने से आगे बढ़ा नहीं ।
माँ ने संघर्ष किया जितना, उस पर भी तो मैं खरा नहीं ।।
क्या मेरी यही महत्ता है, माँ की ममता का दुत्कार करू ।
बेशक मैं बडा अभागा हूँ, जो माँ से ऐसा व्यवहार करूँ ।।
धागा बांध कलाई पर, बहनों ने जो प्यार दिया ।
रहा नहीं पीछे तब मैं भी, मैंने उनका सत्कार किया ।।
रक्षा का बीणा उठा लिया, और वचन बड़े दे डाले थे ।
क्या सचमुच मैं इतना अटल रहा, जब संकट आने वाले थे ।।
अनुराग की चाह जागी मन में, जब व्यसनों से आकृष्ट हुआ ।
प्रियतमा ही ढाल बनी जग में, मैं जब जब पथ से भ्रष्ठ हुआ ।।
तरुणाई में भी सामर्थ्य रही, जब तक वनिता अनुयायी थी ।
जब आँख खुली सपना टूटा, वो गैरों की परछाई थी ।।
जीवन में संघर्ष बढ़े, तब अपना हाथ बढ़ाया था ।
मैं अडिग रहूँ अपने पथ पर, मुझको ये पाठ पढ़ाया था ।।
जब भी निस्तत्व रहा जीवन, तब तब मुझको सुलझाया था ।
पत्नी के घने गेसूओं ने, मेरा सामर्थ्य बढ़ाया था ।।
बेटी को जब लिया गोद में, ये जीवन मेरा धन्य हुआ ।
मेरे आलय का हर कोना, पदार्पण से उसके पुनीत हुआ ।।
करुणा से हृदय भरा मेरा, मैंने जब गले लगाया था ।
जीवन मेरा धन्य हो गया, जब मैंने उसको पाया था ।।
जीवन की ये राह क्लिष्ट, मैं बैसाखी का शरणागत ।
भरा हुआ मैं अहंकार से, फिर भी वामा का परिचारक ।।
मैं करता रहूँ गुमान स्वयं पर, मैं, मैं हूँ और कोई नहीं ।
सचमुच व्यर्थ है जीवन मेरा, नारी बिन मैं कोई नहीं ।।
क्या से क्या बनाता चला गया....
पल-पल मरकर, कण-कण चुनकर ।
मेरे लिए खूबसूरत फ़साने बनाता चला गया ।।
वो शख्स बड़ा ही लाजबाब था ।
वो मुझे क्या से क्या बनाता चला गया ।।
में रोया तो मेरे आँसू पोंछकर ।
हर सुकून मेरे जीवन में लाता चला गया ।।
एक अरसा सा हो गया उसे रोते हुए, देखे हुए ।
मेरी खुशी के लिए, अपने आंसुओं को सुखाता चला गया ।।
वो मुझे क्या से क्या बनाता चला गया …
शौक तो उसके भी थे बड़े-बड़े, जवानी में ।
अपनी हर आरज़ू को दिल में दफनाता चला गया ।।
जो कुछ भी न बना सका खुद को, मेरी वजह से ।
अपने हर सपने को मुझ मे सजाता चला गया ।।
वो मुझे क्या से क्या बनाता चला गया …
कभी नन्ही सी चाहतों की, बड़ी दुकान बन गया ।
तो कभी खूबसूरत आशियाना बनाता चला गया ।।
अपनी हर खुशी को ताक पर रखकर ।
मेरे लिए खुशी के हर गुल खिलाता चला गया ।।
वो मुझे क्या से क्या बनाता चला गया…
एक सवाल हे....
जिंदगी भर का, अनसुलझा सा सवाल है ।
जलता रहे मशाल सा, वह ऐसी मिसाल है ।।
देता रहा जवाब, बचपन के हर सवाल का ।
बुढ़ापे मे आज वह, खुद एक सवाल हे ।।
करता पूरी ख्वाहिशें, घर के हर एक शख्स की ।
कभी शिकायत नहीं, उसे किसी की शिकायत से ।।
उसका अथक प्रयास, इसकी एक मिसाल है ।
आज उसकी जरूरतें भी, खुद एक सवाल हैं ।।
खुश करने मे सभी को, वो व्यस्त है इतना ।
कि जिंदगी से उसकी, खुशियाँ हुईं गुमनाम हैं ।।
सब खुश रहें, समझता यही है खुशकिस्मती मेरी ।
आज भी उसकी खुशियाँ, बस एक सवाल हैं ।।
कल तक था जवाब, जो हर एक सवाल का ।
आज उसकी जिंदगी भी, हुई एक सवाल है ।।
क्या उसके सवालों का, भी जवाब हे कहीं ।
या फिर इस जहांन मे, पिता शब्द ही सवाल है ।।
सतर्कता
आज सुबह-सुबह, सपने में भ्रष्टाचार आया ।
सोते ही सोते उसने, एक सपना दिखाया ॥
उठ भाई जल्दी, क्यों देर कर रहा है ।
अपने भविष्य में क्यों, अंधकार भर रहा है ॥
सूट-बूट पहन ले, अच्छे लोगों से मिलवाता हूँ ।
बाहर खड़ी गाड़ी में, तुझे ऑफिस ले जाता हूँ ॥
मैंने पूछा भाई, मुझे साइकिल चलाना आता है ।
क्यों तू मुझे झूँट-मूंट के, सपने दिखाता है ॥
सपने देखेगा तभी तो, जिंदगी में आगे बढ़ेगा ।
कार क्या चीज है, कल हवाईजहाज में उड़ेगा ॥
मैंने बोला भाई मैं तो, साइकिल ही चलाऊँगा ।
बिना ड्राइविंग लाइसेंस के, चालान थोड़े ही कटवाऊँगा ॥
एक नोट दिखाएगा तो, इन्स्पेक्टर सलाम ठोंकेगा ।
कल से तुझे उस रास्ते पर, कभी नहीं रोकेगा ॥
जहां कहीं पर बाधा हो, इस लक्ष्मी का उपयोग कर ।
जब ज्यादा घूस खाता है, तो सबका थोड़ा सहयोग कर ॥
घूँस नाम सुनते ही, मेरी नींद जाग गई ।
सामने खड़ी गाड़ी, पता नहीं कहाँ भाग गई ॥
जल्दी से तैयार हो, ऑफिस की ओर भागा ।
ईमानदार से बेईमान कैसे बन सकता है, यह अभागा ॥
लेना ही नहीं देना भी, आपको भ्रष्टाचारी बनाता है ।
आपका हर एक सहयोग, भ्रष्ट की हिम्मत बढ़ाता है ॥
सतर्कता हमें भ्रष्ट होने से बचाती है ।
ईमानदारी ही देश को, उन्नति की राह दिखाती है ॥